अंगद किसका पुत्र था Whose son was Angad
अंगद किसका पुत्र था Whose son was Angad
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका इस लेख अंगद किसका पुत्र था (Whose son was Angad) में, बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों आप इस लेख में आप अंगद किसका पुत्र था? अंगद मंदोदरी का पुत्र कैसे हुआ
अंगद का जन्म अंगद के पिता का नाम, तथा अंगद से जुड़े कई रहस्य (Secret) जानेंगे। तो दोस्तों आइये शुरू करते है, यह लेख अंगद किसका पुत्र था।
अंगद किसका पुत्र था Angad kiska Putra Tha
अंगद किसका पुत्र था - रामायण के अनुसार अंगद महाबली किष्कीन्धा के इंद्र पुत्र बानर राज बाली तथा पंच कन्याओं में से एक तारा का पुत्र तथा।
बाली और तारा को बहुत मुश्किलों के पश्चात् ही अंगद पुत्र रूप में प्राप्त हुआ था। अंगद रामायण और राम - रावण के युद्ध का एक प्रमुख पात्र भी था।
जिसने लंका में शांति दूत बनकर अपने स्वामी श्रीराम की ओर से साहस और शक्ति का प्रदर्शन भी किया था और रावण का एक भी योद्धा अंगद का पैर भी नहीं डिगा सका।
अपने पिता बाली की मृत्यु के बाद अंगद किष्कीन्धा का युवराज बना और श्रीराम की सेना में अपने दूत कर्म के कारण बहुत प्रसिद्ध हुआ।
अंगद कौन था Who was Angad
अंगद किष्कीन्धा नरेश बाली और तारा का पुत्र था, जिसने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके रावण और उसके समस्त योद्धाओं के घमंड को नष्ट किया था।
तारा और बाली पुत्र अंगद किष्कीन्धा नरेश बाली की मृत्यु के बाद युवराज घोषित हुआ और भगवान श्रीराम की सेना का महान योद्धा.
जिसने राम और रावण युद्ध में कई भयानक मायावी राक्षसों का वध करके स्वामीभक्त और अपने साहस का परिचय दिया।
अंगद अपने पिता के समान बलशाली तथा कई युद्ध विधाओं में पारंगत था। उसने पैर ज़माने की कला भी अपने पिता बाली से ही सीखी थी।
अंगद मंदोदरी का पुत्र कैसे हुआ How was Angad Mandodari's son
कई पौराणिक धर्म ग्रंथो के आधार पर बताया जाता है, कि तारा अंगद की वास्तविक माता नहीं थी। तारा ने जन्म से ही अंगद का पालन पोषण किया था।
किन्तु अंगद की जन्म देने वाली माता तो मंदोदरी थी। किन्तु सवाल यह उठता है, कि अंगद मंदोदरी का पुत्र कैसे हुआ? मंदोदरी तो रावण की पत्नी थी।
तो आपको बता दें की कई पौराणिक कहानियों और पुराणों में वर्णित है, कि मंदोदरी के पहले पति महाराज बाली थे।
यह कहानी उस समय की है, जब महाराज बाली किष्किंधा से दूर तपस्या कर रहे थे। उस समय मंदोदरी एक अद्वितीय सुंदरी थी उनकी सुंदरता के चर्चे चारों दिशाओं में गूंज रहे थे।
और यह बात महाराज रावण ने भी सुन रखी थी कि तीनो लोको में सबसे सुंदर नारी मंदोदरी ही है। तभी से महाराज रावण के मन में मंदोदरी को प्राप्त करने की लालसा जागृत हो गई थी।
और उन्हें मौका मिला जब किष्किंधा नरेश बाली तपस्या करने के लिए गए। महाराज रावण किष्किंधा पहुंचे और महारानी मंदोदरी और तारा दोनों का हरण कर लिया
तथा अपने पुष्पक विमान में बैठाकर लंका की ओर जाने लगे। मंदोदरी ने कहा अगर महाराज बाली को इस बात का पता चला तो वह तुम्हें जीवित नहीं छोड़ेंगे।
इसलिए हमें छोड़ दो। रावण ने कहा तुम्हारी जैसी सुंदरी का भोग करने के बाद अगर मृत्यु भी आती है तो मुझे स्वीकार है।
तब मंदोदरी ने कहा तुम हमारा अपहरण कर रहे हो जिससे दोनों देश की सेना में भयंकर युद्ध होगा और लाखों निर्दोष लोग मारे जाएंगे जो मैं नहीं चाहती।
अगर तुम मुझे प्राप्त करना चाहते हो और युद्ध नहीं चाहते तो महारानी तारा को किष्किंधा छोड़ दो यही मेरी प्रार्थना है
और आदेश भी, रावण मंदोदरी की बात से सहमत हो गया और उसने पुष्पक विमान से वापस किष्कीन्धा चलने के लिए कहा
तथा महारानी तारा को महल की छत पर छोड़कर जाने लगा। उस समय महारानी मंदोदरी गर्भ से थी. जो महाराज बाली का अंश था।
इसलिए मंदोदरी ने रावण से कहा कि तुम्हारी गर्जना सुनते ही, स्त्रियों के साथ जानवरों के भी गर्भ गिर जाते हैं. रावण ने कहा हाँ यह सत्य है,
फिर महारानी मंदोदरी ने कहा कि मैं यह गर्जना सुनना चाहती हूँ। तब रावण अट्टहास करते हुए भयंकर गर्जना करने लगा और हंसने लगा
तभी महारानी मंदोदरी ने जन्म से पहले ही अपने पुत्र को जन्म दे दिया और महाराज रावण से बोली मुझे इस पुत्र को तारा को दे देने दीजिए
इसके बाद में तुम्हारे साथ चलूंगी। महाराज रावण ने फिर से पुष्पक विमान किष्किंधा की ओर मोड़ दिया और महारानी तारा को अपना पुत्र सौंपते हुए
महारानी मंदोदरी ने कहा यह मेरा पुत्र मेरा अंग है, इसलिए आज से इसका नाम अंगद है। किंतु अंगद को इस बात का आभास भी नहीं होना चाहिए
कि मैं इसकी माँ हूँ। महारानी तारा तुम्हें इसे अपने पुत्र के समान ही प्यार देना है, और हमेशा ऐसे अपना पुत्र ही समझना है इस प्रकार से मंदोदरी युवराज अंगद की वास्तविक माता है।
अंगद की कहानी Story of Angad
युवराज अंगद अपने पिता किष्कीन्धा नरेश महाराज बाली के समान ही महाबली बलशाली और युद्ध नीति में निपुण था।
शत्रु के सामने अपने साहस और शक्ति का प्रदर्शन करके उसने अपने अभूतपूर्व बल और साहस का परिचय भी दिया।
जब भगवान श्रीराम ने शांति संदेश के लिए शांति दूत के रूप में युवराज अंगद को चुना तो भगवान श्रीराम ने कहा, कि शांतिदूत का यह कर्तव्य होता है
कि वह शांति से अपने महाराज का संदेश दुश्मन तक पहुंचाएं इसके साथ यह भी ध्यान रखें कि राजा का किसी भी प्रकार का अपमान भी ना हो
और शांति संदेश इस प्रकार इस चतुराई से पेश करना, कि किसी को अपना अपमान भी महसूस ना हो और साहस का परिचय भी हो जाए।
इस प्रकार अंगद ने महाराज रावण के दरबार में शांति संदेश प्रस्तुत किया, किंतु शांतिदूत अंगद का रावण के दरबार में सम्मान नहीं किया गया। उन्हें बैठने के लिए सिंहासन नहीं दिया गया।
तो अंगद ने अपनी पूंछ से ही सभी से विशाल सिंहासन बना लिया और उस पर बैठकर शांति संदेश रावण को सुनाया जिससे रावण तिलमिला उठा
और उसने अंगद को पकड़ने की आज्ञा दे दी। तब अंगद ने कहा कि मैं अपने भगवान श्री राम की तरफ से आप सभी को एक चुनौती देता हूँ
और प्रतिज्ञा करता हूँ, कि आप सभी में से अगर कोई भी मेरे इस पैर को इस धरती से डिगा दे। तो मैं अपने स्वामी श्री राम की तरफ से यह प्रतिज्ञा करता हूँ
कि बिना युद्ध लड़े ही अपनी हार मान कर बिना माता सीता को लिए ही यहाँ से चले जाऊंगे किंतु रावण की सभा में से कोई भी योद्धा
यहाँ तक कि स्वयं इंद्रजीत मेघनाथ भी अंगद के पैर को नहीं डिगा पाया और अंततः महाराज रावण स्वयं अंगद पैर डिगाने के लिए आ गए
जैसे ही महाराज रावण ने अंगद का पैर पकड़ना चाहा अंगद ने पैर पीछे हटा लिया और महाराज रावण का मुकुट नीचे गिर गया
अंगद नें बहुत ही शीघ्रता से उस मुकुट को उठा लिया और भगवान श्री राम की तरफ फेंक दिया और कहा अरे दुष्ट पैर छूना है,
तो भगवान श्रीराम के पकड़ वे भक्तवत्सल और प्रजावत्सल है, वह तुझे अवस्य ही क्षमा कर देंगे। तभी रावण ने आवेश में आकर अपने सैनिको को अंगद को पकड़ने की आज्ञा दे दी।
जब तक रावण के सैनिक अंगद तक पहुँचते अंगद एक छलांग लगाकर महल से बाहर आ गया। इस प्रकार अंगद नें महाराज रावण के सामने शांतिदूत होने का परिचय दिया और साथ ही अपने अदम्य साहस और शौर्य का भी परिचय दिया।
दोस्तों इस लेख में आपने अंगद किसका पुत्र था, अंगद मंदोदरी का पुत्र कैसे हुआ तथा अंगद की कहानी (Whose son was Angad Story) पढ़ी, आशा करता हूंँ, लेख आपको अच्छा लगा होगा।
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