भक्त प्रहलाद का जीवन परिचय Bhakt Prahlad ka jivan parichay
भक्त प्रहलाद का जीवन परिचय Bhakt Prahlad ka jivan parichay
हैलो दोस्तों आपका इस लेख भक्त प्रहलाद का जीवन परिचय (Bhakt Prahlad ka jivan Parichay) में बहुत - बहुत स्वागत है।
इस लेख में भक्त प्रहलाद के जीवन परिचय के साथ उनकी कुछ महान गाथाओं के बारे में बताया जा रहा है।भारत में कई भक्त और भगवान की पौराणिक कथाएँ है
किन्तु भक्त प्रहलाद तो भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) के वे अनन्य भक्त है, जिन्होंने भक्ति की परम सीमा को भी सार्थक कर दिया तो आइये जानते है ऎसे विष्णु भक्त प्रहलाद के बारे में:-
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भक्त प्रहलाद कौन थे who was bhakt prahlad
विष्णु पुराण में बताया गया कि जब पृथ्वलोक पर असुरों के अत्याचार से समस्त भूमण्डल त्राहि - त्राहि कर रहा था। उस समय असुर सम्राट हिरणकश्यप कि पत्नि कयाधु ने एक विष्णु भक्त पुत्र को जन्म दिया
जिसका नाम रखा प्रहलाद असुर कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त और सेवक था किन्तु उसके पिता हिरणकश्यप को अपने पुत्र पर बड़ा क्रोध आता था।
क़्योकी हिरणकश्यप ने कई देवी देवताओं से वरदान तथा शक्तियाँ प्राप्त की थी जिनके मद में चूर वह स्वयं को ही भगवान समझता तथा भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था
और अपने राज्य में स्वयं की पूजा करवाता था अगर कोई अन्य देवी देवताओं की पूजा करता तो उसका मरना निश्चित था चाहे वह उसका पुत्र ही क्यों ना हो इसलिए हिरणकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को पहले समझाया
किन्तु जब उसने विष्णु भक्ति नहीं छोडी तो उसे मारने का प्रत्यन किया किन्तु हजार प्रत्यन करने के बाद भी वह भक्त प्रहलाद को नहीं मार सका।
भक्त प्रहलाद का जन्म Bhakt prahlad ka janm
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु भक्त प्रहलाद का जन्म कृष्ण नगरी मथुरा के एक गाँव फालैन में हुआ था। यहाँ पर भक्त प्रहलाद तथा भगवान विष्णु की पूजा की जाती है
तथा होलिका दहन वाले दिन यहाँ पर सुबह होली जलाई जाती है तो उस होली की आग से ब्राह्मण समाज का पंडा उस धधकती आग से होकर गुजरता है और उस पंडा का बाल भी बांका नहीं होता।
भक्त प्रहलाद की पत्नि Bhakt prahlad's wife
भक्त प्रहलाद की पत्नि का नाम धृति था जिन्होंने पराक्रमी तथा महात्यागी पुत्र विरोचन को जन्म दिया था भक्त प्रहलाद के चार पुत्र थे जिनमें विरोचन बहुत वीर तथा त्यागी था।
एक बार वह कोई वचन दे दे तो अपने वचन से पीछे नहीं हटता था। विरोचन का विवाह बिशालाक्षी से हुआ था। जिससे महाबली और महादानी राजा बलि उत्पन्न हुआ
एक बार जब असुरों तथा देवताओं में युद्ध हुआ तो प्रहलाद तथा धृति पुत्र विरोचन ने असुरों का नेतृत्व किया और युद्ध जीत लिया तब उस समय देवता भागे - भागे फिर रहे थे
तब देवताओं ने ब्राह्मण का वेश रख कर विरोचन से उनके वचन में फांस कर उनके प्राण माँग लिए और विरोचन ने अपने प्राण त्याग दिये।
भक्त प्रहलाद की कथा Story of bhakt prahlad
फागुन जिस लिए जाना जाता है ,उनमें दीवानापन और मस्ती की उमंग भी शामिल है। कहते है कि फागुन शुरुआत भक्त प्रह्लाद से हुई थी।
प्रह्लाद का अर्थ ही है खास किस्म के उल्लास से सराबोर व्यक्तित्व। कयाधु भक्त प्रहलाद की माँ ने अपने पति हिरण्यकश्यप से होशियारी से विष्णु का नाम जपवा लिया। और इसके प्रभाव से ही कयाधु, ने प्रहलाद जैसे विष्णुभक्त को जन्म दिया।
कयाधु के अलावा सभी परिजन हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका तथा अन्य आसुरी स्वभाव लोग थे। जिनमें दत्तात्रेय, शंड और मर्क, आयुष्मान, शिवि, विरोचन,वाष्कल, और यशकीर्ति आदि विष्णुभक्त भी थे। जिनमें प्रह्लाद सबसे महान थे।
जबकि पिता ने भक्त प्रहलाद को कई कष्ट यातनाएँ तथा मारने का भी प्रयास किया, किन्तु उनका बाल बांका भी नहीं हुआ।
एक बार जब हिरण्यकश्यप तप कर रहा था तो इन्द्र को भय शताने लगा और इंद्र ने हिरण्यकश्यप की पत्नि कयाधु को बंदी बनाकर ले जाने लगे उस समय कयाधु गर्भ से थी जब देवर्षि नारद ने देखा
तो उन्होंने इंद्र को समझाया की कयाधु के गर्भ में एक महान विष्णु भक्त पल रहा है और इस हालत में तुम इसे बंदी बनाकर ले जा रहे हो तब इंद्र ने कयाधु को छोड़ दिया और
देवर्षि नारद कयाधु को अपने आश्रम लेकर पहुँचे । जहाँ पर नारद ने कयाधु और गर्भस्थ शिशु को ईश्वर भक्ति के संस्कार तथा उपदेश दिये और भक्त प्रहलाद ने माँ के गर्भ में ही भक्ति के संस्कार ग्रहण कर लिए।
प्रहलाद का जन्म हुआ तो प्रहलाद को विष्णु की भक्ती करता देख पिता हिरण्यकश्यप ने पुत्र को दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आश्रम में भेज दिया जहाँ पर प्रहलाद ने लौकिक विद्याएं सीखीं
लेकिन भक्ति के संस्कार भी जागते रहे भक्त प्रहलाद को नारद के अलावा दत्तात्रेय, शंड और मर्क आदि कई महान ऋषियों ने भी प्रहलाद को शिक्षित और संस्कारवान बनाया।
प्रहलाद के चाचा हिरण्याक्ष अमर होने की कोशिश में मृत्यु को प्राप्त हो गए। जब देवताओं को पता चला तो उन्होंने दैत्यपुरी पर आक्रमण किया।
प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप खुद को ही ईश्वर कहते थे और अपनी पूजा कराने लगे थे । उसके पास ऐसी शक्तियाँ और सिद्धियाँ थी
कि कोई भी प्राणी,देवता असुर आदि कहीं भी, किसी भी समय उसे मार नहीं सकता थे । उसे वरदान था कि किसी भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य, न रात में न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर, न बाहर। कोई अस्त्र-शस्त्र उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था।
ऐसा वरदान पाकर हिरण्यकश्यप अत्याचारी बन बैठा। प्रहलाद उसे बुरी तरह खलने लगा।
उसने प्रहलाद को मारने के बहुत उपाय किए, लेकिन हर बार वह बच गए। हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका को आग से बचने का वरदान था।
इसलिए उसने ने होलिका की मदद से प्रहलाद को जलाकर मारने की योजना बनाई। और होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई आग में जा बैठी,
लेकिन भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका जलकर मर गई।
उधर विष्णु ने नरसिंह भगवान के रूप में खंभे से निकलकर गोधूलि के समय हिरण्यकश्यप को ख़त्म कर दिया होलिका के जलने पर ही होली' का त्योहार मनाया जाने लगा।
दोस्तों आपने इस लेख में भक्त प्रहलाद का जीवन परिचय (Bhakt Prahlad ka jivan Parichay) तथा महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त की आशा करता हूँ कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा कृपया कमेंट और शेयर जरूर करें।
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