वैदिक काल का सामाजिक जीवन Social life of Vedic period
वैदिक काल का सामाजिक जीवन Social life of Vedic period
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दोस्तों इस लेख में वैदिक काल का सामाजिक जीवन, वैदिक काल का संपूर्ण इतिहास के साथ ही कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तरों (Importent question answer) के बारे में भी जानेंगे।
जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते है। तो दोस्तों आइये शुरू करते है यह लेख वैदिक काल का इतिहास तथा प्रश्नोत्तरी में :-
वैदिक काल का इतिहास history of vaidik period
वैदिक सभ्यता के निर्माता आर्य (Arya) थे, जो उत्तर पूर्व एशिया से भारत में आए थे, इसलिए वैदिक सभ्यता को आर्यों के द्वारा निर्मित सामाजिक, सांस्कृतिक तथा
आर्थिक व्यवस्था के कारण वैदिक संस्कृति और वैदिक सभ्यता के रूप में जाना जाता है, इस प्रकार वैदिक काल का इतिहास निर्माण में आर्यों की प्रमुख भूमिका (Role) रही है।
वैदिक सभ्यता के निर्माता आर्य थे। आर्य ईरान से भारत आये थे, किन्तु आर्यों के भारतीय क्षेत्र में आगमन पर विभिन्न वैज्ञानिकों तथा विद्वानों (Scientist and wisest) ने भिन्न-भिन्न मत दिए हैं।
लेकिन कई विद्वान आर्यों को कैस्पियन सागर क्षेत्र का ही मूल निवासी मानते हैं। आर्य लोग खैबर दर्रे के रास्ते से भारत आए थे, और सबसे पहले आर्यों ने पश्चिमोत्तर भारत को अपना निवास स्थान बनाया था।
धीरे-धीरे उन्होंने पूर्व की ओर कदम बढ़ाएँ और वैदिक सभ्यता का निर्माण किया, इसीलिए वैदिक काल के इतिहास के निर्माता या वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization) के निर्माता आर्य थे।
ईरान की पुस्तक जेंदअवेस्ता तथा एक अभिलेख वोगजकोई में स्पष्ट होता है, कि आर्य ईरान से होकर भारत आए थे, जिस जगह पर वे रहने लगे
उस जगह को सप्त सैनधव प्रदेश (Sapt shaindhav pradesh) कहा जाता था, क्योंकि यह प्रदेश सात नदियों के द्वारा सिंचित होता था। यहाँ पर मिट्टी उपजाऊ थी, पानी की भी समुचित व्यवस्था थी, इसलिए इस प्रदेश का नाम सप्त सैधव प्रदेश पड़ा।
वैदिक काल के इतिहास का समय 1500 ईस्वी पूर्व से 600 ई• पू• के बीच का माना जाता है, किंतु वैदिक काल के इतिहास को समझने के लिए इसको दो भागों में बांटा गया है:-
- ऋग्वेदिक या पूर्व वैदिक काल 1500 से 1000 ई• पू• (Rigvedic or pre-Vedic period)
- उत्तर वैदिक काल 1000 से 600 ई• पू• (Post vedic period)
ऋग्वेदिक काल या पूर्व वैदिक काल Rigvedic period
वैदिक काल के पहले भाग को ऋग्वेदिक काल (Rigvedic Period) जिसका समय 1500 ईसवी पूर्व से 1000 ईसवी पूर्व माना जाता है, इसलिए ऋग्वेदिक काल को पूर्व वैदिक काल के नाम से भी जाना जाता है।
ऋग्वेदिक काल की समस्त जानकारी ऋग्वेद नामक प्रमुख वेद में है, ऋग्वेदिक काल में ही आर्य लोग आए थे, और अपना जीवन व्यतीत करते थे।
जिन स्थानों की मिट्टी उपजाऊ होती थी। वहीं पर रहने लगते थे। धीरे-धीरे आर्यों ने एक जगह स्थायी रहना शुरू कर दिया और एक विशाल क्षेत्र का निर्माण किया जिसे सप्त सैधव प्रदेश कहा जाता था।
यहाँ पर सिंचित होने वाली जमीन सात नदियों से सिंचित होती थी। जिन नदियों में प्रमुख रूप से - सिंधु, सतलज, रावी, चिनाब, झेलम, व्यास, तथा सरस्वती थी। ऋग्वेद में इस क्षेत्र को ब्रह्मावर्त (Bramhavart) के नाम से भी जाना गया है।
वैदिक काल का सामाजिक जीवन Social life vedic age
ऋग्वेदिक काल में सामाजिक संरचना का आधार परिवार हुआ करता था। परिवार पितृसत्तात्मक था, परिवार के मुखिया Head of Family को कुलप (Kulap) कहा जाता था।
वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति भी अच्छी थी। उन्हें सम्मान दिया जाता था, उनको महत्व तथा महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का राजनीति में जाने का तथा स्वतंत्र रूप से बोलने का अधिकार हुआ करता था।
ऋग्वेदिक काल में स्त्रियों ने भी शिक्षा ग्रहण की और कुछ विदुषी महिलाओं में अपाला, घोषा, विश्ववारा, लोपामुद्रा आदि प्रमुख थी।
ऋग्वेदिक काल में सामाज Society कबीलाई प्रमुख के रूप में होता था। कबीले में वर्णव्यवस्था की झलक भी देखने को मिलती है।
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, तथा शूद्र की चर्चा मिलती है, किंतु उस समय यह विभाजन जन्म मूलक ना होकर कर्म मूलक हुआ करता था।
ऋग्वेद ग्रंथों में बताया गया है, कि ब्राह्मण का प्रादुर्भाव परमपिता ब्रह्मा के मुख से हुआ है, जबकि क्षत्रिय उनकी भुजाओं से उत्पन्न हुआ है। वही जांघो से वैश्य और शुद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं।
ऋग्वेदिक काल के प्रमुख ऋषियों में विश्वामित्र, वामदेव अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ जैसे ज्ञानी ऋषियों का महत्वपूर्ण स्थान है। ऋग्वेदिक काल में गाय को अघन्या ना मारने योग्य कहा गया था।
जबकि ऋग्वेद में दास और दशयु की चर्चा भी मिलती है। इन दोनों के मध्य बहुत समय तक संघर्ष वर्ण व्यवस्था को लेकर चलता रहता था।
ऋग्वेदिक काल में लम्बे समय तक विवाह ना करने वाली कन्याओं को अमाजू कहा जाता था। बहुपत्नी विवाह प्रथा प्रचलित थी समाज में सती प्रथा नहीं थी।
विधवा विवाह प्रथा प्रचलित थी। विशिष्ट अवसरों पर सोम पेय पदार्थ आर्यों का सबसे प्रिय पदार्थ होता था। स्त्री और पुरुष दोनों आभूषणों के शौकीन थे।
पुरुष लुंगी अंगोंच्छा तो स्त्रियाँ धोती आदि पहना करती थी। लोग शिकार करना चोपड़ आदि खेल में आनंद लिया करते थे।
आर्थिक जीवन Financial life
वैदिक काल के इतिहास में ऋग्वेदिक काल का आर्थिक जीवन बहुत ही सरल तथा पूर्ण रूप से विकसित था। यहाँ की अर्थव्यवस्था (Economy) का मुख्य महत्त्व पशुओं को दिया जाता था।
यहाँ पर संपत्तियों की गणना मवेशियों के आधार पर की जाती थी। मवेशियों में गाय के अतिरिक्त भेड़ और घोड़े भी प्रमुख रूप से गिने जाते थे।
इसलिए ऋग्वेदिक काल में पशुपालन की तुलना में किसी को बहुत कम महत्व दिया जाता था। यहाँ पर क़ृषि के लिए उर्दर वपन्ती तथा धान्य जैसे शब्दों का उपयोग किया गया है।
यहाँ वस्तु का आदान प्रदान करने वाली वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी, जबकि सिक्के (Coin) को निष्क और सतवान कहा जाता था।
ऋग्वेदिक काल में व्यवसाई बढ़ाई, (तक्षण ) लोहार, स्वर्णकार, चर्मकार जुलाहा आदि प्रमुख थे। व्यापारियों को पाणि कहा जाता था, जबकि सूदखोर को बैकनाट कहा जाता था।
ऋग्वेदिक कालीन प्राचीन नदियाँ Rigvaidik period rivers
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
---|---|
कृमु | कुर्रम |
कुमा | काबुल |
वितस्ता | झेलम |
अश्विनी | चिनाव |
परूशनी | रावी |
शतुद्री | सतलज |
बिपाशा | ब्यास |
सदानीरा | गंडक |
दृद्वान्ति | घग्घर |
गोमल | गोमती |
सुषोंमा | सोहन |
मरूंदावधा | मरूबर्मन |
राजनीतिक जीवन Political life
ऋग्वेदिक काल में समाज की छोटी सी संरचना कुल हुआ करती थी, और कुल का आधार परिवार (Family) होता था।
जिसका प्रधान कुलपति कहलाता था। कई परिवारों के मिलने से ग्राम (गाँव) बनते थे, जिसके प्रधान को ग्रामणी (Gramni) कहते थे।
इस प्रकार अनेक ग्रामों को मिलाकर एक विश बनता था और विश के प्रधान को विशपति कहते थे, इसी प्रकार से कई विशों को मिलाकर जन बनता था, और जन के प्रधान को जन अधिपति या राजा (King) के नाम से जाना जाता था।
दसराज युद्द् का वर्णन भी यहाँ मिलता है, यह आर्य तथा अनार्य के बीच हुआ था,जिसमें भरतजन के स्वामी सुदास थे, जिसने रावी नदी के तट पर 10 राजाओं के संघ को हराया था।
इसमें पांच आर्य तथा पांच आर्येत्तर जनों के प्रधान थे। राजा का प्रमुख कर्म कबीले की संपत्ति की रक्षा करना था। राजा कोई पैतृक शासक नहीं होता था।
सभा और समिति के द्वारा उनका चयन किया जाता था। ऋग्वेदिक काल में सभा और समिति तथा विदथ जनप्रतिनिधि संस्थाएँ होती थी।
जो राजनीतिक सामाजिक, धार्मिक, और आर्थिक प्रश्नों पर विचार विमर्श करती थी। राजा का राज्याभिषेक होता था।
जहाँ पर मुख्य रूप से पदाधिकारी ग्रामणी, रथकार पुरोहित सैनानी आदि उपस्थित हुआ करते थे। इन अधिकारियों को रत्नेन के नाम से जाना जाता था।
ऋग्वेदिक काल में पूरप का भी वर्णन मिलता है, पुरप का कार्य दुर्गो की सुरक्षा करना था। ऋग्वेदिक काल में सभा समाज के विशिष्ट जनों की संस्था होती थी।
जिनमें स्त्रियाँ भी भाग लेती थी, जबकि समिति में सभी लोग भाग लिया करते थे। इनके अध्यक्ष President को ईशान के नाम से जाना जाता था।
जबकि ऋग्वेदिक काल में विदथ एक प्राचीन संस्था हुआ करती थी जिसे जनसभा भी कहा जाता था।
धार्मिक जीवन Religious life
ऋग्वेदिक काल के लोगों की धार्मिक प्रवृतियाँ पर उनके भौतिक जीवन, सिद्धांतों का प्रभाव अधिक था। समाज पितृसत्तात्मक था. तो देवताओं की प्रधानता देवताओं की झलक स्पष्ट दृष्टिगत होती थी।
देवकूल में स्थान प्राप्त देवताओं पर प्राकृतिक शक्तियों का प्रभाव देखा जा सकता है। ऋग्वेदिक काल में इंद्रदेव, वरुणदेव, सूर्य, मित्र, अग्नि देवता हुआ करते थे।
ऋग्वेदिक काल का सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र को माना जाता था, जिसे पुरंदर (Purandar) के नाम से ही जाना गया है। इसके बाद अग्नि और फिर वरुण का नंबर आता है।
ईश्वर की आराधना करने पर मोक्ष और मुक्ति मिलती है। तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, ऐसा ऋग्वेदिक काल में बताया जाता था।
यज्ञ तथा बलि की प्रथा इस समय थी, किंतु यज्ञ मन्त्रविहीन होते थे। इस समय अंधविश्वास (blind faith) भी प्रचलित था।
ऋग्वेद में एकेश्वरवाद के प्रमाण भी मिलते हैं, जबकि बारी-बारी से देवताओं को प्रमुखता देने की प्रवृत्ति भी इस समय थी।
वैदिक काल में टोटम संबंधी आस्थाओं का प्रचलन था। यहां पर लोग जादू टोने तथा अंधविश्वास में भी विश्वास किया करते थे।
ऋग्वेदिक काल के प्रमुख देवता Rigvaidik periods gods
देवता | सम्बन्ध |
---|---|
वरुण | ऋत का संरक्षक |
इंद्र | युद्ध का नेतृत्वकर्ता |
पूषण | चारागाहों का स्वामी |
अग्नि | ब्रह्मा से जोड़ने वाला |
मारूत | आँधी तूफान का देवता |
अश्विन | विपत्ति हरने वाला देवता |
धौ | आकाश का देवता |
सोम | वनस्पतियों का देवता |
ऊषा | प्रगति एवं उत्थान की देवी |
विष्णु | सृष्टि का नियामक |
सूर्य | जीवन देने वाला देवता |
आर्ष | विवाह और संधि का देवता |
त्वशक्षा | धातुओं का देवता |
अरण्यानी | जंगल की देवी |
पर्जन्य | वर्षा का देवता |
मित्र | शपथ एवं प्रतिज्ञा का |
यम | मृत्यु का देवता |
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