सप्तऋषियों के नाम Saptrishiyon ke naam
सप्तऋषियों के नाम Saptrishiyon ke naam
हैलो दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है आज के हमारे इस लेख सप्तर्षियों के नाम (Saprishiyon ke naam) में। दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप सप्तऋषियों के नाम तथा मंत्र
के साथ ही सप्तऋषियों की कहानी saptrishi ke naam, saptarishi name, saptarishi name in hindi, सप्तऋषि के नाम हिंदी में के बारे में भी पढ़ पाएंगे। तो दोस्तों आइए जानते हैं, सप्तऋषि कौन हैं और सप्तऋषियों की कहानी क्या है:-
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सप्तऋषि कौन है who was saptrishi
दोस्तों कभी- कभी आपने रात के समय आसमान में चम्मच के आकार के सितारों से बनी हुई आकृति देखी होगी। उस आकृति कोई सप्तर्षि मंडल (Sptrshimondl) या सप्तऋषि कहा जाता है,
जिसे अंग्रेजी में Ursa mejor कहते है, जबकि कनाडा, अमेरिका में विगडिप्पर (wigdipper) यानि बड़ा चमचा और चीन में पेताऊ कहा जाता है।
ये सभी सातों तारे सप्तऋषि ध्रुव तारे का चक्कर लगाते हैं। इनको ध्रुव तारे का एक चक्कर पूरा करने में 24 घंटे का समय लगता है।
सप्तऋषि का मतलब होता है, सात ऋषियों का समूह अर्थात वो ऋषि, जिन्होंने अपना सर्वस्व मनुष्य जाति के कल्याण और मंगल के लिए अर्पित कर दिया।
वैदिक काल में कई ऋषि मुनि हुए है, जिनमें सात ऋषि ऐसे हुए जो पराक्रम, ज्ञान, धर्म, नीति, नियम की प्रतिमूर्ती कहे जाते थे।
इन्होने वेदों को कई मन्त्र दिए है। यह ऋषि वैदिक धर्म संस्कृति के संरक्षक संस्थापक कहे जाते है। वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक सभी सातों ऋषियों का उल्लेख कई पुराणों वेदो तथा पौराणिक ग्रंथो में मिलता है।
महर्षि वशिष्ठ Maharishi Vashishth
महर्षि वशिष्ठ सप्त ऋषियों में एक महान ऋषि है। महर्षि वशिष्ठ भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र तथा अयोध्या पति राजा दशरथ के कुल गुरु
और भगवान श्री राम के गुरु है। महर्षि विश्वामित्र त्रिकालदर्शी होने के साथ ही परमवीर तथा ज्ञानी महर्षि हैं। महर्षि वशिष्ठ ने ही महर्षि विश्वामित्र के सौ पुत्रों को मृत्यु के घाट उतार दिया था।
जिसका कारण महर्षि विश्वामित्र के पास कामधेनु गाय की पुत्री थी। महर्षि वशिष्ठ को ईश्वर के द्वारा सत्य का ज्ञान हुआ था।
महर्षि वशिष्ठ ने भगवान श्री राम के जीवन में अपना अमूल्य योगदान देते हुए जन कल्याण तथा मंगल के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
महर्षि विश्वामित्र Maharishi Vishvamitra
महर्षि विश्वामित्र भी सप्त ऋषियों की श्रेणी में आते है।इनके पिता महाराज गाधी थे, जो एक क्षत्रिय थे इसलिए महर्षि विश्वामित्र भी क्षत्रिय थे और उस समय उनका नाम राजा कौशिक था।
महर्षि विश्वामित्र ने ब्राह्मणत्व ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर तथा महर्षि वशिष्ठ की मान्यता के बाद ही प्राप्त किया था। पुराणों में महर्षि वशिष्ठ तथा महर्षि विश्वामित्र के युद्ध की चर्चा मिलती है।
जिसमें महर्षि विश्वामित्र के 100 पुत्र मारे गए थे। महर्षि विश्वामित्र ने रामायण काल में भगवान श्रीराम के जीवन में अपना अमूल्य योगदान दिया।
वह राजा दशरथ से ताड़का, मरीच, सुबाहु के वध के लिए श्रीराम और लक्ष्मण को लेकर वन गए। जहाँ भगवान श्रीराम ने ताड़का और सुबाहु का वध किया।
इसके बाद उन्होंने अहिल्या का उद्धार किया और जनकपुरी पहुँच कर सीता स्वयंवर में शिव धनुष तोड़ माता जानकी से नाता जोड़ा।
महर्षि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को धर्म, नीति और ज्ञान की शिक्षा दी। जो उनके लिए पथ प्रदर्शक और प्रेरणादायक रही।
महर्षि कण्व Maharishi Kandv
महर्षि कण्व एक महान वैदिक काल के ऋषि तथा सप्तऋषि है। इनके पिता का नाम ऋषि घोर था। ऋषि घोर महर्षि अंगिरा के पुत्र थे।
महर्षि कण्व वन में आश्रम वना कर नित्य प्रति ईश्वर की आरधना तथा जनकल्याण में लगे रहते थे। महर्षि कण्व ब्राम्हचारी थे इसलिए उनके वंश की उत्पत्ति नहीं हुई।
महर्षि कण्व ने महर्षि विश्वामित्र तथा उनकी पत्नी अप्सरा मेनका की पुत्री शकुंतला का पालन पोषण किया जिसका विवाह हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत से हुआ था।
शकुंतला और राजा दुष्यंत से एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम था "भरत" भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे, जिन्होंने सोमयज्ञ को व्यवस्थित किया था।
भारद्वाज ऋषि Bhardwaj Rishi
भारद्वाज ऋषि वैदिक काल के महान तपस्वी तथा सप्तऋषि है। इनके पिता देवताओं के गुरु बृहस्पति और माता का नाम ममता था।
भारद्वाज ऋषि ऋग्वेद के छठवें मण्डल के मन्त्रदृष्टा है, जिसमें 765 मन्त्र है। भारद्वाज ऋषि ने भारद्वाज सहिंता और भारद्वाज स्मृति भी लिखी है।
भारद्वाज ऋषि के 10 ऋषि पुत्र है जो सभी ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा है। इनकी एक रात्रि नाम की पुत्री भी है, जो रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा है।
अत्री ऋषि Atri Rishi
ऋषि अत्री एक महान ऋषि और सप्तऋषियों की श्रेणी में आते है, जिन्होंने जनकल्याण परोपकार के लिए ही अपने सभी कार्य किये।
अत्री ऋषि ऋग्वेद के पांचवे मण्डल के दृष्टा है। अत्री ऋषि के पिता ब्रम्हा, और सती अनुसूईया के पति है। वैदिक काल की 16 सतियों में सती अनुसूईया का नाम बड़े आदर से लिया जाता है।
सती अनुसूईया के सतीत्व की परीक्षा लेने आये त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश को देवी सती अनुसूईया ने तीन छोटे - छोटे बालकों में परिवर्तित कर दिया था।
और उनकी याचना स्वीकार करते हुए अपने सतीत्व की रक्षा की। सती अनुसूईया से प्रसन्न होकर त्रिदेव ने सती अनुसूईया और ऋषि अत्री को
अपने समान तीन पुत्र जिनमें चन्द्रमा (ब्रम्हा) दुर्वासा (महादेव) दत्रातेय (विष्णु) का माता पिता बनने का सौभाग्य प्रदान किया।
ऋषि वामदेव Rishi Vamdev
ऋषि वामदेव वैदिक कालीन एक महान ऋषि थे। इनके पिता का नाम ऋषि गौतम था। ऋषि वामदेव को ऋग्वेद के चौथे मण्डल का मन्त्रदृष्टा माना जाता है।
ऋषि वामदेव जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता है। पुराणों में बताया जाता है, कि जब ये गर्भ में थे तभी इनको अपने पिछले दो जन्मो का ज्ञान हो गया है।
गर्भ अवस्था में ऋषि वामदेव ने तत्वज्ञान पर इंद्र से चर्चा भी की। ऋषि वामदेव चाहते थे, कि वे मनुष्यों की तरह जन्म ना ले, बल्कि पेट फाड़कर जन्म ले, किन्तु यह संभव ना हुआ और उन्होंने शयेन पक्षी के रूप में गर्भ से जन्म लिया।
शौनक ऋषि Shounak Rishi
शौनक ऋषि वैदिक काल के वह ऋषि थे, जो अन्य कदापि ना बन पाए। शौनक ऋषि के पिता का नाम शुनक ऋषि था।
शौनक ऋषि ही पहले वे ऋषि हुए, जिन्होंने 10000 विधार्थियो के गुरुकुल की स्थापना कर शिक्षा प्रदान की और कुलपति होने का सम्मान प्राप्त किया।
सप्तऋषि मन्त्र Saptrishi Mantra
सप्तऋषि मन्त्र की बड़ी महिमा है।. ऋषि पंचमी के दिन इसके उच्चारण करने मात्र से ही सभी सातों ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।
यह मन्त्र स्त्रियों के लिए भी फालदायी है। महिलाओं को स्नान शुद्ध होकर घर की सफाई तथा शुद्ध करके घर के किसी स्वच्छ स्थान पर हल्दी रोली कुमकुम चन्दन आदि
से चौकोर मण्डल बनायें और वहाँ सप्तऋषियों की स्थापना करें अगरबत्ती धूप पुष्प अर्पित करें और जल से अधर्य दें और निम्न मन्त्र का जाप करें।
सप्तऋषि पूजन का मंत्र
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः'॥
इसके बाद बिना बोया भोजन करें और ब्राह्मचार्य का पालन करें ऐसे ही ऋषि पंचमी के दिन सात साल तक व्रत रखें और
आठवे साल में सप्तर्षिकी पीतवर्ण सात मूर्ति युग्मक ब्राह्मण-भोजन कराकर उनका विसर्जन करें जिससे सप्तऋषियों की कृपा आप पर आपके परिवार पर हमेशा बनी रहेगी।
सप्तऋषि मण्डल किसे कहते है What is saptrishi taramandal
रात्रि में जब हम आकाश की तरफ उत्तरी गोलार्ध में देखते है, तो हमें सात तारों का समूह दिखाई देता है, जिन्हे सप्तऋषि मण्डल या सप्तऋषि तारामंडल के नाम से जाना जाता है।
इनमें चार तारे चौकोर होते है और तीन तिरछे। जब इनको काल्पनिक रेखाओं के द्वारा मिलाया जाता है, तो ये प्रश्न चिन्ह की तरह दिखते है।
इन सातों तारों के नाम प्राचीन काल के सात महान ऋषियों के नामों पर है। इस तारामंडल को फाल्गुन-चैत महीने से श्रावण-भाद्र तक आसमान में आसानी से देखा जा सकता है।
सप्तऋषियों की कहानी Story of saptrishi
सप्ऋषियों के अंतर्गत सात ऋषि आते हैं, जिनके जीवन से संबंधित कहानियाँ भी अलग-अलग हैं। यहाँ पर हम महर्षि विश्वामित्र वशिष्ठ ऋषि के बीच हुए युद्ध की कथा सुनाने जा रहे हैं, जो निम्न प्रकार से है:-
महर्षि विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं थे। महर्षि विश्वामित्र ने ब्राह्मणत्व अपने पुरुषार्थ और तपस्या के बल पर ही प्राप्त किया था।
महर्षि विश्वामित्र महाराज गाधी के पुत्र थे और उनका जन्म उनकी बहन के पति ऋषि ऋषीच के आशीर्वाद के फलस्वरूप हुआ था।
इस प्रकार से महर्षि विश्वामित्र क्षत्रिय थे और उनका नाम महाराज कौशिक था। जब महर्षि विश्वामित्र राजा बने तब उनके प्रजाजन उनसे बहुत प्रसन्न थे।
एक बार महर्षि विश्वामित्र क्षेत्र भ्रमण करने के लिए गए और वह एक जंगल से होते हुए निकले जहाँ पर महर्षि वशिष्ठ का आश्रम था।
महर्षि विश्वामित्र वशिष्ठ के आश्रम में पहुंचे और उन्होंने महर्षि वशिष्ठ को प्रणाम किया। महर्षि वशिष्ठ ने भी राजा कौशिक का बड़ा ही आदर सत्कार किया।
महर्षि वशिष्ठ के बार-बार आग्रह करने पर महर्षि विश्वामित्र और उनकी सेना उनका आतिथ्य स्वीकार करने के लिए रुक गई।
महर्षि वशिष्ठ के पास एक गाय थी जो कामधेनु की पुत्री थी जिससे महर्षि विश्वामित्र अर्थात राजा कौशिक की प्रजा का पोषण हुआ खाना प्राप्त हुआ।
इस चमत्कारी गाय को देखकर राजा कौशिक के मन में लालच आ गया और उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से उस गाय को मांगा।
किंतु महर्षि वशिष्ठ ने उस गाय को देने के लिए मना कर दिया। इस पर महर्षि विश्वामित्र ने बलपूर्वक उस गाय को छीनने का प्रयास किया
और दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में महर्षि विश्वामित्र के 100 पुत्र मारे गए, जबकि महर्षि वशिष्ठ को भी बहुत क्षति हुई।
महर्षि विश्वामित्र ने महर्षि वशिष्ठ से अपनी पुत्रों की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए तपस्या शुरू कर दी तथा अस्त्र शस्त्र प्राप्त करके उन्होंने फिर से महर्षि वशिष्ट से युद्ध किया।
किंतु वह महर्षि वशिष्ठ से फिर युद्ध हार गए महर्षि वशिष्ठ ने ब्राह्मणत्व को क्षत्रियत्व से श्रेष्ठ बताया और महर्षि विश्वामित्र ने ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की।
तपस्या में देवराज इंद्र ने कई प्रकार के व्यवधान उत्पन्न किए किंतु महर्षि विश्वामित्र अपनी तपस्या से ना डिगे। अंत में ब्रह्मा जी ने महर्षि विश्वामित्र को वरदान दिया और उन्हें ब्राह्मणत्व प्रदान किया। महर्षि वशिष्ठ ने भी महर्षि विश्वामित्र को गले से लगाकर कहा तुम एक महान ऋषि हो।
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