रावण किस जाति का था, रावण का गौत्र Ravan kis jati ka tha

रावण किस जाति का था रावण का गौत्र Ravana kis jati ka tha 

हैलो दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख जिसमें हम आपको रावण किस जाति का था? रावण का गौत्र क्या था (Ravana belonged to which caste) आदि महत्वपूर्ण तथ्यों को बताएँगे

दोस्तों हमने पिछली पोस्ट में रावण किसका अवतार था? और रावण का असली नाम क्या था? आदि महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा की थी,

और इस लेख में हम रावण की जाति तथा गौत्र के बारे में जानेंगे तो बने रहिये हमारे इस लेख के साथ रावण किस जाति का था और रावण का गोत्र क्या था?

रावण किस जाति का था



रावण किस जाति का था Ravana belonged to which caste 

रावण किस जाति का था - धरती पर ऐसे कई राक्षस अवतरित हुये है, जिन्होंने अपने बाहुबल तथा मायावी शक्तियों के कारण देवताओं को भी परास्त कर दिया है।

यहाँ तक कि कई बार देवता राक्षसो के डर के मारे यहाँ वहाँ छिपे फिरते हैं। दोस्तों ऐसे बहुत से मायावी असुर हुये है, जिनमें से एक है "रावण"

रावण के बारे में सब लोग भलीभांति परिचित हैं, कि रावण लंका का नरेश राक्षसों का राजा हुआ करता था जिसे भगवान श्री राम के द्वारा मुक्ति प्राप्त हुई थी।

रावण महर्षि विश्वा तथा कैकसी का पुत्र था। महर्षि विश्वा महर्षि पुलत्स्य के पुत्र थे, इसलिए रावण ब्राह्मण जाति का था, किंतु वह अपनी माता की तरफ से राक्षस जाति का भी था। रावण में राक्षसी प्रवर्तियाँ सबसे अधिक थी क़्योकी वह अपनी माता का आज्ञाकारी था।

और माता भी राक्षसी थी जिसकारण रावण में राक्षसी प्रवृतियाँ और अधिक जागृत हो गई और वह अनीति अत्याचार अधर्म के मार्ग पर चलने लगा।

रावण ने अपनी तपस्या से कई वरदान तथा माया भी शक्तियां प्राप्त करके समस्त लोकों पर अपनी विजय पताका फहराने लगा और अपने आप को भगवान समझने लगा।

रावण का गौत्र क्या था what was the gotra of ravana

रावण का गौत्र क्या था - लंकापति रावण जिसे दशानन के नाम से जाना जाता है, अपनी अतुल्य मायावी शक्तियों तथा दुराचारी प्रवृति के कारण तीनों लोकों में विख्यात हो गया था।

ऐसे मायावी ने ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी अपनी माता राक्षसी कैकसी के कारण राक्षसी प्रवृतियों को अपनाया तथा हमेशा दुराचार करता रहा।

रावण का गोत्र सारस्वत ब्राह्मण था। सारस्वत ब्राह्मण होने के परिणाम स्वरूप रावण परम शिव भक्त, कूटनीतिज्ञ, वेदों शास्त्रों का ज्ञाता परम प्रतापी महाज्ञानी पंडित भी था।

इसके साथ ही वह रसायन शास्त्र और ज्योतिष का प्रकांड विद्वान था। यहाँ तक, कि उसने सभी ग्रहों को अपने घर में भी बंद कर लिया था।

जब मेघनाथ का जन्म हुआ था तब रावण ने सभी ग्रहों को अपने ग्यारहवें घर में बंद कर लिया था, ताकि उसका पुत्र मेघनाथ का कोई वध ना कर सके

और वह हमेशा अमर रहे, किंतु शनि देव ग्यारहवें घर से बारहवें घर में प्रवेश कर गए, जो मेघनाथ की मृत्यु का कारण बना।

रावण के 10 सिर का मतलब 10 Heads of Ravana Means

रावण के 10 सिर का मतलब - रावण एक ऐसा परम प्रतापी राक्षस था जो वर्षों तक कठोर तपस्या करने में सक्षम था और अपने अटल अडिग  निश्चय से कभी नहीं डिगता था।

एक बार रावण ने भगवान भोले शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की लेकिन कई वर्षों तक तपस्या करने के बाद भी भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुये।

तो रावण अपने सिर को काट कर भगवान शिव को समर्पित करने का प्रयास करने लगा। रावण ने अपना सिर काटा और भगवान शिव को समर्पित कर दिया लेकिन उसकी जगह पर दूसरा सिर उत्पन्न हो गया

रावण ने दूसरा भी सिर काटा और उसे महादेव भगवान शिव को समर्पित कर दिया लेकिन फिर से उसका तीसरा सिर उत्पन्न हो गया

इस प्रकार से रावण अपना सिर काटता और भगवान शिव को अर्पित करते जा रहा था और यह सिलसिला नौ सिरों  तक पहुँच गया था।

किन्तु जैसे ही रावण ने दसवाँ सिर काटने का प्रयास किया उसी समय भगवान शिव प्रकट हो गए और रावण से बहुत प्रसन्न हुये।

इसलिए रावण को भगवान शिव का परम भक्त भी कहा जाता है। रावण के 10 सिर का मतलब भी बड़ा ही साफ साफ है। यह दस सिर हमें 10 बुराइयों से बचने की शिक्षा देते हैं।

रावण के 10 सिरों का मतलब काम, क्रोध, लोभ, मोह, गौरव, ईर्ष्या, मन, ज्ञान, चित्त, तथा अहंकार से है। रावण के 10 सिर 10 बुराइयों से मनुष्य को सदा दूर रहने और बचने की शिक्षा प्रदान करते हैं।

दोस्तों आपने इस लेख में रावण किस जाति का था? (Ravan kis jati ka tha) रावण का गौत्र, तथा रावण के 10 सिरों के अर्थ के बारें में पढ़ा. आशा करता हूं यह लेख आपको अच्छा लगा होगा।

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