समुद्रगुप्त का इतिहास History of Samudragupta
समुद्रगुप्त का इतिहास History of Samudragupta
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख समुद्रगुप्त का इतिहास (History of Samudragupt) में। दोस्तों इस लेख में आप समुद्रगुप्त का इतिहास के साथ समुद्रगुप्त कौन था? समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी कौन था?
समुद्रगुप्त का राजकवि कौन था? समुद्रगुप्त की उपलब्धियाँ तथा विजयों के बारे में जान पायेंगे। तो आइये दोस्तों करते है, यह लेख शुरू समुद्रगुप्त का इतिहास:-
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समुद्रगुप्त गुप्त वंश (Gupt Dynesty) का महान योग्य तथा प्रतापी शासक था। समुद्रगुप्त का इतिहास युद्ध विजयों से भरा हुआ है उसने अपने पिता चन्द्रगुप्त प्रथम (Chandragupt।) से
छोटा साम्राज्य प्राप्त किया और युद्ध विजयों के बाद विशाल सम्राज्य में परिवर्तित कर दिया। समुद्रगुप्त कुशल सेनापति था।
इसलिए उसने दिग्विजय (Digvijay) का सपना पूर्ण किया, समुद्रगुप्त का इतिहास (History of Samudragupt) में मुख्य बिंदु निम्नप्रकार है:-
समुद्रगुप्त कौन था जीवन परिचय Who was Samudragupta
समुद्रगुप्त गुप्त वंश का चतुर्थ शासक था, जिसका जन्म 318 ईसवी में हुआ था, वह गुप्त के शासक चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र था। समुद्रगुप्त की माता का नाम कुमार देवी था, जो लिच्छवी वंश की राजकुमारी थी।
समुद्रगुप्त अपने आप को लिच्छवी दोहित्र कहने पर गर्व महसूस करता था। समुद्रगुप्त अपने पिता के समान ही महत्वकांक्षी और एक वीर शासक था।
जिसकी विजयों और जीवन सम्बंधित धटनाओं का उल्लेख सिलालेख, स्तम्भलेख, मुद्राओं, तथा साहित्यिक ग्रंथो से प्राप्त होता है।
समुद्रगुप्त के शासन काल की प्रमुख घटनाओं, विजयों का बहुत ही सुंदर वर्णन समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में उत्कीर्ण है।
यह प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त के राजकवि हरिषेण के द्वारा उत्कीर्ण की गई थी, जिसे समुद्रगुप्त की आत्मकथा भी कहा जाता है।
समुद्रगुप्त एक महान योद्धा, कुशल सेनापति तथा योग्य राजकुमार था। इसीलिए चंद्रगुप्त प्रथम ने समुद्रगुप्त को ही गुप्त साम्राज्य का शासक नियुक्त किया था, जबकि स्मिथ (Smith) ने भी समुद्रगुप्त को भारतीय नेपोलियन की संज्ञा दी है।
समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी कौन था who was the successor of Samudragupta
समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी उसका बड़ा बेटा रामगुप्त था। किंतु रामगुप्त एक दुर्बल शासक था, इसलिए वह शकों से युद्ध में हार गया।
रामगुप्त की मृत्यु होने के पश्चात समुद्रगुप्त का दूसरा बेटा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से जाना जाता है, गुप्त वंश का सम्राट बना।
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने कई राज्यों से वैवाहिक संबंध स्थापित करके शकों पर विजय प्राप्त की, तथा रामगुप्त की हार का बदला लिया।
समुद्रगुप्त का राजकवि कौन था who was the king poet of Samudragupta
हरिषेण समुद्रगुप्त का दरबारी संस्कृत कवि और मंत्री था। समुद्रगुप्त की राजसभा में उन्हें सर्वाधिक आदर सम्मान प्राप्त था।
समुद्रगुप्त के राजकवि हरिषेण की मुख्य उपलब्धि 345 ई. में रचित प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति है। इसमें समुद्रगुप्त के द्वारा जीते गए राज्यों और विजयों की जानकारी है।
इसके साथ ही समुद्रगुप्त के जीवन की कई घटनाओं का उल्लेख इसमें मिलता है। प्रयाग प्रशस्ति में हरिषेण ने 24 पक्तियाँ उत्कीर्ण की है, जो भिन्न-भिन्न घटनाओं से सम्बंधित है।
समुद्रगुप्त की उपलब्धियाँ Achievements of Samudragupta
समुद्रगुप्त के शासनकाल की विभिन्न प्रकार की उपलब्धियाँ हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न प्रकार से हैं:-
समुद्रगुप्त की विजय Samudragupta's conquest
सिंहासन पर बैठने के पश्चात समुद्रगुप्त ने दिग्विजय होने की योजना बनाई और एक विशाल सेना लेकर कई राज्यों के साथ युद्ध किया और उन्हें जीतता चला गया समुद्रगुप्त की प्रमुख विजय निम्न प्रकार से है:-
आर्यावर्त का प्रथम अभियान Aryavarta's first campaign
समुद्रगुप्त के राजकवि हरिषेण द्वारा उत्कीर्ण प्रयाग प्रशस्ति की 13वीं और 14वीं पंक्ति से इस बात की पुष्टि होती है, कि समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त का प्रथम अभियान उत्तरी भारत के राजाओं पर विजय
प्राप्त करने के उद्देश्य से चलाया था। जिसमें समुद्रगुप्त ने बरेली के शासक अच्युत, नागसेन वंश, कोटकुलज वंश के साथ ही अन्य छोटे-मोटे राजवंशों को पराजित करके अपने अधीन किया।
दक्षिणापथ का अभियान Dakshinapatha campaign
आर्यावर्त के प्रथम अभियान का पूरी तरह से सफल होने के पश्चात समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत पर अभियान विजय अभियान शुरू कर दिया।
इस अभियान में समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत के लगभग 12 राजाओं पर विजय प्राप्त की जिनमें कौशल का राजा महेंद्र, महाकालांतर का राजा व्याघ्रराज, कोराल का शासक मंटराज,
पिष्टपुर का शासक महेन्द्रगिरी, कोट्टूर का शासक स्वामीदत्त, एरंडपल्ल का राजा दमन, कांची का राजा विष्णुगोप, अवमुक्त का राजा नीलराज
वेंगी का राजा हस्तिवर्मन, पालक्क का शासक उग्रसेन, देवराष्ट्र का शासक कुबेर तथा कुस्थलपुर का शासक धनंजय शामिल था।
यह दक्षिण के 12 राजाओं का एक संघ था, जिसका नेता कांची का राजा विष्णुगोप था। अतः समुद्रगुप्त ने इस संघ को पराजित किया। समुद्रगुप्त ने उन राजाओं को बंदी बनाया फिर अपनी अधीनता में उन्हें राज्य वापस लौटा दिया।
आर्यावर्त का द्वितीय अभियान Aryavarta's second expeditionआर्यावर्त के प्रथम अभियान में समुद्रगुप्त ने जिन राजाओं को पराजित किया था। उनको समुद्रगुप्त ने बंदी बनाने के पश्चात पुनः मुक्त कर दिया था।
कुछ समय के पश्चात उन राजाओं ने एक संघ का निर्माण किया और अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। इस संघ में उत्तर भारत के 9 राज्य शामिल थे।
इन सभी राजाओं ने समुद्रगुप्त के विरोध में सिर उठाना शुरू कर दिया इसलिए इन राजाओं के विरोध का दमन करने के लिए समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त का द्वितीय अभियान शुरू किया
और एक विशाल सेना लेकर 9 राजाओं के संघ से युद्ध किया जिसमें समुद्रगुप्त पुनः विजय हुआ। राजाओं के इस संघ में कोसंबी का राजा रूद्रदेव, नागवंशी शासक मतिल, शासक नागदत्त,
पोखरण के शासक चंद्रवर्मा, विदिशा और पद्मावती का शासक गणपतिनाथ, मथुरा का शासक नागसेन, अहिछत्त का शासक अच्युत, विदिशा का शासक नंदि, कामरूप का शासक बलबर्मा शामिल थे।
आटविक राज्यों पर विजय Conquest of the Atik kingdoms
अपनी लगातार विजयों से उत्साहित होने के बाद समुद्रगुप्त ने आटविक राज्यों पर आक्रमण कर दिया और विजयी हुआ।
प्रयाग प्रशस्ति से यह पुष्टि होती है, कि समुद्रगुप्त ने आटविक राज्यों के राजाओं को अपना दास बना लिया था। तथा आटविक राज्यों को अपने शासन में मिला लिया था फ्लीट कहते हैं,
कि आटविक राज्य उत्तर में गाजीपुर से लेकर जबलपुर तक फैले हुए थे। किन्तु कुछ विद्वानों का मानना है, कि आटविक राज्यों की सीमा आर्यावर्त और पूर्वी सीमान्त प्रदेशो के बीच थी।
सीमावर्ती राज्यों पर विजय Conquest of border kingdoms
समुद्रगुप्त ने अपने दिग्विजय का अभियान लगातार जारी रखा और सीमावर्ती राज्यों पर भी विजय प्राप्त की। समुद्रगुप्त ने पूर्वी सीमांत प्रदेश के पांच राज्यों जिनमें समतट,
जिसकी राजधानी कर्मान्त, डबाक, ढाका के पास, कामरुप (असम ), नेपाल का लिच्छवी वंश, तथा कार्तुपूर ( कुमाऊं, गढ़वाल, रुहेलखण्ड ) शामिल थे से युद्ध किया और उन्हें पराजित किया।
इसके साथ पश्चिमी सीमांत प्रदेश जहाँ पर समुद्रगुप्त ने नौ गढ़राज्यों पर विजय प्राप्त की जिनमें मालव, अर्जुनायन, यौधेय, मद्रक,
अभीर, प्रार्जुन, संकानिक, काक, तथा खरपरिक शामिल थे। जिसका उल्लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति की 22 वी और 23 वीं पंक्ति से प्राप्त होता है।
विदेशी राज्यों पर विजय Conquest of foreign states
समुद्रगुप्त प्रयाग प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है, कि कुछ विदेशी राजाओं ने भी समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की थी।
विदेशी राजाओं ने समुद्रगुप्त के दरबार में कन्याओं को उपहार स्वरूप,गरुड़ मुद्रा तथा अन्य कई उपहार भेजे थे। विदेशी राज्य भी समुद्रगुप्त के शासन के नियमों को अपने शासनकाल में अपनाते थे।
जबकि कुछ विदेशी राज्य ऐसे है, जिनसे समुद्रगुप्त के मैत्रीपूर्ण संबंध थे, जिनमें प्रमुख रूप से देवपुत्र-षाहि-षाहानुषाहि जो उत्तर पश्चिम भारत में शासन कर रहे थे,
शक, उत्तर भारत के थे, मुरुण्ड अफगानिस्तान में शासन कर रहे थे, सैडल इनका शासन लंका के कुछ क्षेत्रों में था, सर्वद्वीपवाशी पूर्वी एशिया के द्वीपो में शासन कर रहे थे, इन सभी से समुद्रगुप्त के अच्छे संबंध थे।
अश्वमेघ यज्ञ Ashwamedha yagya
समुद्रगुप्त की लगातार विजय होती गई तथा उसने अपने पिता से प्राप्त पर छोटे साम्राज्य को एक विशाल साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया।
दिग्विजय होने के कुछ समय बाद ही समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया। इस यज्ञ के दौरान उसने स्वर्ण मुद्राएँ चलायी। उन स्वर्ण मुद्राओं पर एक और घोड़े की आकृति और उसकी नीचे
अश्वमेध पराक्रम शब्द लिखे हुए थे, जिसका अर्थ था "अश्वमेध के योग्य पराक्रम वाला" मुद्रा की दूसरी तरफ राजाधिराज: पृथ्वीमवजित्य दिवं जयति अप्रतिवार्य वीर्य: लिखा था।
जिसका अर्थ "राजाधिराज (Rajadhiraj) पृथ्वी को जीत कर अब स्वर्ग की जय कर रहा है उसकी शक्ति और तेज अप्रीतम है" था।
समुद्रगुप्त के बारे में अन्य जानकारी other information of samudrgupt
- समुद्रगुप्त गुप्त वंश का चौथा शासक था, जिसका शासनकाल 335 ईसवी से 375 ईसवी माना जाता है।
- समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्ता देवी है जिसका उल्लेख राजकवि हरिशेण ने किया है।
- समुद्रगुप्त की माता का नाम लिच्छवी कुमार देवी था, जो लिच्छवी वंश की राजकुमारी थी।
- समुद्रगुप्त का राजकवि हरिषेण था जिसकी मुख्य कृति प्रयाग प्रशस्ति थी जिसमें समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख मिलता है।
- समुद्रगुप्त एक उदार शासक तथा विष्णु का उपासक था उसके शासनकाल में हिंदू धर्म अधिक विकसित हुआ।
- समुद्रगुप्त ने दिग्विजय की योजना बनाई थी और अपने शासनकाल में लगभग 100 से अधिक युद्ध जीते थे।
- समुद्रगुप्त की विजयों के फलस्वरूप विंसेट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन की संज्ञा दी है।
- समुद्रगुप्त एक उच्च कोटि का कवि था, जिसने कई प्रकार की कविताएं भी लिखी है, समुद्रगुप्त को एक बीणा बजाते हुए सिक्के पर भी दर्शाया गया है।
- समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल में बौद्ध भिक्षु वसुबंधु को संरक्षण प्रदान किया था।
- समुद्रगुप्त के शासनकाल में श्रीलंका के शासक मेघबर्मन ने बोधगया में एक बौद्ध विहार के निर्माण की अनुमति लेने के लिए अपने राजदूत को समुद्रगुप्त के पास भेजा था।
दोस्तों इस लेख में आपने समुद्रगुप्त का इतिहास (History of Samudragup) पड़ा। आशा करता हुँ आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
FAQs for Samudragupta
Q.1. समुद्र गुप्त का जन्म कब हुआ था?
Ans. समुद्रगुप्त का जन्म 318 ईसवी में गुप्त के शासक चन्द्रगुप्त प्रथम के यहाँ हुआ था।
Q.2. समुद्रगुप्त के पिता का नाम क्या था।
Ans समुद्रगुप्त के पिता का नाम चन्द्रगुप्त प्रथम था, जो गुप्त वंश के पराक्रमी शासक थे।
Q.3. समुद्रगुप्त ने कौन से सिक्के चलाए थे?
Ans. समुद्रगुप्त ने आठ प्रकार के सिक्के चलाये जिन्हे मानक, आर्चर, बैटल एक्स, चंद्रगुप्त- I, कचा, टाइगर, लिरिस्ट नाम से जाना जाता था, उसके कुछ सिक्कों पर समुद्रगुप्त को स्वयं वीणा बजाते हुए देखा गया है।
Q.4. समुद्रगुप्त की मृत्यु कब हुई?
Ans. समुद्रगुप्त गुप्त वंश का चौथा शासक था, जिंसने 355 ईसवी से 375 ईसवीतक शासन किया और समुद्रगुप्त 380 ईस्वी में हो गयी।
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